शायरों-कवियों की रचनाओं ने बांधा समा

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भिलाई : छत्तीसगढ़ उर्दू तंज़ीम के तत्वाधान में राज्य स्तरीय शेअरी नशिश्त ( काव्य गोष्ठी) वृंदावन हाल रायपुर में रखी गई।

जिसकी सदारत हरीप्रकाश वत्स ने की। कारगिल जंग में हिस्सा लेने वाले ब्रिगेडियर प्रदीप यदु मेहमान ख़ुसूसी थे। वहीं विशेष अतिथि के तौर पर एडवोकेट फ़ज़्लअब्बास सैफ़ी, कल्पना यदु और डा०बीना सिंह मौजूद थे। संचालन की जवाबदारी नूरुस्सुब्ह ख़ान “सबा”दुर्गवी ने निभाई। पूरन जैसवाल के सहयोग से हुए इस आयोजन में पूरे प्रदेश से आए शायरों-कवियों ने अपने कलाम-कविताएं सुनाकर महफिल की रौनक बढ़ा दी।
हम तो नादां है,यूंही बात सुना देते हैं।
इल्म वाले इसे तूफ़ान बना देते हैं।।
डा०बीना हिंद भिलाई

यादों की बरसात में,भीगे भीगे नैन।
आएंगे वो लौट कर,राह तके दिन रैन।।
पोखन लाल जैसवाल पलारी

आओ मिल कर जीवन जीलें
कोई सुंदर गीत लिखें।
हो दुनिया में प्रेम ब्याप्त बस,
ऐसी कोई गीत लिखें।।
मुकेश अग्रवाल

शिकायतें बहुत हैं खुलासा कौन करे।
मुस्कुरा देते हैं,तमाशा कौन करे।।
योगेश शर्मा “योगी”

सुलह की रस्म निभाना बहुत ज़रूरी है।
दिलों को पहले मिलाना बहुत ज़रूरी है।।
डा०नौशाद सिद्दीक़ी भिलाई

माना तेरी नज़र में मेरी अहमियत नहीं।
ऐसा नहीं कि मुझ में कोई ख़ासियत नहीं।।
आर डी अहिरवार

तूफ़ां से मुझे आप डराते हैं भला क्यों।
तूफ़ां मेरी कश्ती के निगहबान रहे हैं।।
यूसुफ़ सागर भिलाई

फ़र्क़ बहुत है तेरी और मेरी तालीम में।
तू ने उस्ताद से सीखा है और मैं हालात से।।
ओमवीर करन भिलाई

नफ़रतों के बीज बोकर वो दिलों के दरमियां
रोटियां भी सेकते हैं मसअला के दरमियां।।
रियाजं गौहर भिलाई

जितना उड़ले ये धरती ही।
अंतिम एक बिछौना बाबा।।
पूरन जैसवाल पलारी

मेरे बदन में ना दरिया ना कूआं है कहीं।
तो फिर ये आंख में पानी कहां से आता है।।
इरफ़ानुद्दीन इरफ़ाऩ धरसीवां

मुफ़लिसी छीन लेती है रोटी।
भूक चीखे तो शेर होता है।।
प्रतीक कश्यप पलारी

हम वो हैं जो बनाते हैं सहरा को गुलिस्तां।
लेकिन वो हैं चमन को बियाबां किये हुए।।
नूरुस्सुबह ख़ान “सबा”

मैं ख़ुद को और अपनी क़िस्मत को
आज़मा रही हूं।
जो हो नहीं सकता वो सब को करके
दिखा रही हूं।।
अदिती तिवारी

ग़ज़ल कही न कभी और बन गए शायर, वो एक ही शेर कहते हैं शायरी के लिए।
जहां के दर्द बटोरे हैं खुद ही हमने हम, कसूरवार हैं आंखों की इस नमीं के लिए।
शुचि भवि, भिलाई

चैन,सुकूं,आंगन,दरवाज़ा,दर भी साथ
चला जाता है।
मां जब घर से जाती है तो घर भी साथ
चला जाता है।।
अनिल राय भारत

किसी ने जान कर देखा नहीं है।
किसी ने देख कर जाना नहीं है।।
परिन्दे भूल जाते हैं ये अक्सर।
यहां पर जाल है,दाना नहीं है।।
अभिसेक वैष्णव

नैतिकता को छोड़ छोड़कर,
भौतिकता को ओढ़ कर।अपनों से मुंह मोड़ कर,जीवन के मूल्य फोड कर,
भाई चारे को तोड़ कर,हिंसा से नाता जोड़कर
हम कहां जा रहे हैं।
ब़्रिगेडियर प्रदीप यदू।

ज़रूरत है निकालें ढूंढकर इनको।
यहां कितने ही बच्चे बे सहारे हैं।।
ज़मीं पर आसमां से टूट कर”गौहर”
वही गिरते हैं जो कमज़ोर तारे हैं।।
गौहर जमाली रायपुर

सभी शायरों और कवियों ने एक से बढ़कर एक रचनाएं प्रस्तुत कीं जिस की वजह से प्रोग्राम बहुत ही कामयाब रहा। सज्जाद अली गौहर जमाली रायपुर ने सभी शायरों,कवियों और श्रोताओं का दिल से शुक्रिया अदा किया।

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