नई पीढ़ी के लिए ज्ञान, संस्कृति और आत्मबोध का सेतु : “भारतीय ज्ञान परम्परा – विविध आयाम”
भिलाई/इस्पात नगरी के शिक्षाविद् आचार्य डॉ.महेशचन्द्र शर्मा के सांस्कृतिक प्रवास के दौरान भोपाल में आचार्य प्रभु दयाल मिश्र ने अपनी महत्त्वपूर्ण कृति “भारतीय ज्ञान परम्परा – विविध आयाम” उन्हें भेंट की।
अट्ठारह अध्याय और प्रायः पौने दौसो पृष्ठों की ये किताब, राष्ट्रीय शिक्षानीति – 2020 पर केन्द्रित है। वैदिक साहित्य, रामायण, महाभारत, कालिदास, तुलसीदास और स्वामी विवेकानन्द के विचारों की पृष्ठभूमि पर पाठ्यक्रम की विषय वस्तु को रोचक, ज्ञानवर्धक और सरल भाषा में आचार्य मिश्र ने प्रस्तुत किया है। डॉ.शर्मा ने बताया कि शैक्षणिक संस्थानों में जब इस के आधार पर उन्होंने व्याख्यान दिये तो प्राध्यापकों और विद्यार्थियों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया।
पुस्तक के लेखक आचार्य प्रभु दयाल मिश्र महर्षि अगस्त्य वैदिक संस्थान भोपाल के अध्यक्ष हैं। पं.मिश्र तुलसी मानस प्रतिष्ठान मध्यप्रदेश भोपाल की पत्रिका तुलसी मानस भारती के प्रधान सम्पादक भी हैं। लेखक ने भारतीय ज्ञान -विज्ञान परम्परा के साथ गूगल, विकीपीडिया और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (ए.आई.) आदि सुलभ स्रोतों का भी यथास्थान उपयोग किया है। श्रीराम तिवारी, निदेशक, महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ , संस्कृति विभाग, म.प्र. शासन, उज्जैन ने भूमिका में बताया है कि असत्य से सत्य की ओर, अन्धकार से प्रकाश कीओर एवं मृत्यु से अमरता की ओर जाने को ही भारतीय ज्ञान परम्परा का सार माना गया है।
वहीं सप्रे संग्रहालय भोपाल के संस्थापक – संयोजक पद्मश्री विजय दत्त श्रीधर के अनुसार पुस्तक पाठकों को अस्मिता, अस्तित्व और आत्मबोध के अमृत सरोवर में अवगाहन करायेगी। आचार्य डॉ.महेशचन्द्र शर्मा ने भी पठन-पाठन के पश्चात् उपर्युक्त विचारों से सहमति व्यक्त करते हुए इसे प्राध्यापकों और विद्यार्थियों के लिये विशेष उपयोगी बताया। सभी उससे लाभान्वित भी हो रहे हैं। विद्वान् और अनुभवी लेखक आचार्य पं.प्रभु दयाल मिश्र को साधुवाद एवं शुभकामनायें दी हैं।