दुर्गा प्रसाद पारकर के छत्तीसगढ़ी उपन्यास के हिन्दी अनुवाद का हुआ विमोचन

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छत्तीसगढ़ के ग्रामीण परिवेश का ईमानदारी से चित्रण करता है उपन्यास “बहू हाथ के पानी’’

भिलाई। अंचल के जाने-माने छत्तीसगढ़ी साहित्यकार दुर्गा प्रसाद पारकर के छत्तीसगढ़ी उपन्यास “बहू हाथ के पानी’’ के हिन्दी अनुवाद का विमोचन रविवार को किया गया। ग्रामीण पारिवारिक पृष्ठभूमि पर आधारित इस छत्तीसगढ़ी उपन्यास के हिंदी अनुवादक शैलेन्द्र पारकर हैं। मुख्य अतिथि हेमचंद यादव विश्वविद्यालय दुर्ग के कुलपति डॉ. संजय तिवारी ने मूल लेखक और अनुवादक दोनों के लेखकीय परिश्रम की सराहना की।

मुक्तकंठ साहित्य समिति के तत्वावधान में गीता भवन (ब्रज मंडल), सेक्टर-6 में रविवार को हुए आयोजन में रायपुर, दुर्ग व भिलाई के कई विद्वान वक्ता मौजूद थे। किताब के विमोचन उपरांत मुख्य अतिथि कुलपति डॉ. संजय तिवारी ने कहा कि किसी लेखक के लिए उसकी किताब विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम का हिस्सा होना एक बड़ी उपलब्धि है और उसका अनुवाद होना पाठकों के बीच इसकी लोकप्रियता को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि वह मूलत: विज्ञान के विद्यार्थी रहे हैं, इसलिए उनका मानना है कि विज्ञान का योगदान अपनी जगह है लेकिन मानवीय संवेदना सिर्फ साहित्य ही दे सकता है।

विशिष्ट अतिथि साहित्यकार, गीतकार व भाषाविद् डॉ. चितरंजन कर ने कहा कि छत्तीसगढ़ी परंपरा में आज ‘बहू हाथ का पानी’ एक मिथक बन गया है और इसे वास्तविकता में बदलने की पड़ताल यह उपन्यास करता है। भाषाविद् व पूर्व अध्यक्ष, बख्शी सृजन पीठ रमेंद नाथ मिश्र ने कहा कि यह उपन्यास ग्रामीण परिवेश का पूरी ईमानदारी से चित्रण करता है और आगे बढ़ने की प्रेरणा भी देता है। डुमन लाल ध्रुव ने कहा कि यह उपन्यास समाज में स्त्री के स्थान पर सवाल उठाता है।

डॉ. पिसी लाल यादव ने कहा कि छत्तीसगढ़ की ग्रामीण पृष्ठभूमि पर अब तक जितने भी उपन्यास लिखे गए उनमें उन्हे यह श्रेष्ठ लगता है। उन्होंने उपन्यास में उल्लेखित तीनों महिला पात्रों का विश्लेषण भी किया। पुलिस अधीक्षक (सी.आई.डी.) एवं महासचिव, मुक्तकंठ साहित्य समिति नरेंद्र कुमार सिक्केवाल ने कहा कि उपन्यास का शीर्षक ही अंदर के पूरे कथानक को अभिव्यक्त कर देता है और इसके हर अध्याय में जिस तरह से ग्रामीण जीवन को उकेरा गया है, वैसा बहुत कम पढ़ने में आता है।
अध्यक्षता कर रहे मुक्तकंठ साहित्य समिति के अध्यक्ष गोविंद पाल ने कहा कि छत्तीसगढ़ का सामाजिक ताना-बाना और यहां की संस्कृति को समझना है तो इस उपन्यास को जरूर पढ़िए। उन्होंने अनुवादक की चुनौतियों पर भी अपनी बात रखी।

आंचलिकता बावजूद राष्ट्रीय स्तर का उपन्यास: डॉ. शर्मा

उपन्यास के छत्तीसगढ़ी व हिंदी संस्करण पर बोलते हुए कल्याण महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. सुधीर शर्मा ने कहा कि छत्तीसगढ़ की सामाजिक स्थिति सौ साल पहले जैसी थी, उसमें खास बदला नही है और इसकी पड़ताल उपन्यास में लेखक पूरी साफगोई से करता है। डॉ. शर्मा ने कहा कि आंचलिकता के बावजूद यह उपन्यास राष्ट्रीय स्तर की रचना है। छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग की सचिव डॉ. अभिलाषा बेहार ने कहा कि छत्तीसगढ़ को समझने ऐसे उपन्यास लिखे जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि जैसा प्रेमचंद ने आजादी के पहले का ग्रामीण भारत अपने साहित्य में दर्ज किया था, ठीक वहीं कार्य करते हुए आज लेखक श्री पारकर छत्तीसगढ़ की ग्रामीण पृष्ठभूमि को दर्ज कर रहे है।

धर्मेंद्र ने सुनाया गीत, अतिथियों, लेखक-अनुवादक का हुआ सम्मान

इस दौरान गंडई से आए युवा गीतकार धर्मेंद्र जंघेल ने ‘अरे अरे भाई रे काया माटी म मिल जाही रे’ गीत सुना कर खूब वाहवाही बटोरी। मुक्त कंठ साहित्य समिति ने अंत में सभी अतिथि, लेखक व अनुवादक का सम्मान किया। आयोजन में मुख्य रूप से बलदाऊ राम साहू, रजनी रजक, डॉ. संजय दानी, रामकुमार वर्मा, जावेद हसन, रियाज खान गौहर, नीलम जायसवाल, नरेश कुमार विश्वकर्मा, सोनिया सोनी, इंद्रजीत दादर, इस्माइल आजाद, डॉ नौशाद अहमद सिद्दीकी, शमा परवीन, वासुदेव भट्टाचार्य, वी नाथ, शिवमंगल सिंह सुमन, यशवंत साहू, ब्रजेश मलिक, कमल शुक्ल, रामकुमार वर्मा, प्रदीप कुमार चंद्राकर, हेमलाल यादव, कमल शुक्ल, कमल शर्मा, मुकुंद प्रसाद, रोहित सहित अनेक साहित्य प्रेमी उपस्थित थे। समूचे आयोजन का संचालन डॉ. गणेश कौशिक ने किया और आभार प्रदर्शन मुक्तकंठ साहित्य समिति के सहसचिव बृजेश मलिक ने किया।

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