भिलाई।
पुरातात्विक धरोहर वाले देवबलोदा स्थित प्राचीन शिव मंदिर के संरक्षण एवं उन्नयन का कार्य चल रहा है। इसके तहत मंदिर परिसर में ही स्थित प्राचीन कुंड की भी सफाई की जा रही है। उल्टे पिरामिड के आकार में बने इस कुंड में पत्थरों से पचरीकरण किया गया है। 40 बाई 60 फीट लंबाई एवं चौड़ाई वाले इस कुंड में 1006 पत्थर लगे हैं। पानी निकालने के बाद कुंड की भी मरम्मत की जानी है इसके लिए इन पत्थरों की नंबरिंग की गई है। जिससे पत्थरों को यथा स्थान पर दोबारा लगाया जा सके। एक माह से भी अधिक समय से सफाई का काम चल रहा है। वर्तमान में 25 ट्रैक्टर ट्राली से अधिक मलबा यहां से निकाला जा चुका है। क्रेन के माध्यम से पत्थर बाहर निकलने लगे हैं।

छत्तीसगढ़ के पुरातात्विक धरोहर में से एक देव बदलता स्थित प्राचीन शिवमंदिर के संरक्षण एवं पर्यटन विकास के लिए सेल भिलाई इस्पात संयंत्र, राष्ट्रीय संस्कृति कोश एनसीएफ एवं पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग भारत शासन के बीच एक समझौता हुआ था। जिसके तहत भिलाई इस्पात संयंत्र के सामुदायिक विकास विभाग द्वारा इस ऐतिहासिक शिव मंदिर के संरक्षण की जिम्मेदारी ली गई है। विभाग द्वारा इस मंदिर के संरक्षण और उन्नयन के साथ ही अन्य विकास गतिविधियों जैसे पार्किंग क्लॉक रूम पीने के पानी की व्यवस्था सुंदरीकरण आदि का काम यहां पर कराया जा रहा है। कलचुरीकालीन राजाओं ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। यह मंदिर राजधानी रायपुर और दुर्ग के बीच भिलाई तीन नगर निगम क्षेत्र के ग्रामीण वार्ड देवबलोदा में स्थित है। मंदिर में जहां साल भर पर्यटक एवं श्रद्धालु पहुंचते हैं वही महाशिवरात्रि पर्व के दौरान यहां मेला भी लगता है इतना ही नहीं सावन में यहां बड़ी संख्या में कावड़िया पहुंचते हैं। मान्यता है कि यहां शिवलिंग स्वयं ही भूगर्भ से उत्पन्न हुआ है। इसके अलावा मंदिर एवं परिसर में स्थित कुंड को लेकर कई किंवदंतियां भी प्रचलित हैं।
मंदिर के बाहर परिसर मैं चारों ओर धौलपुरी पत्थर लगाया जा रहा है। इसके अलावा करीब 6 फीट का गलियारा परिसर के दोनों और के गेट से बनाया गया है। पत्थर लगने से पूर्व कंक्रीट का बेस तैयार किया गया पत्थर लगाने का काम लगभग अंतिम चरणों में है और 15 दिनों में यह पूरा हो जाएगा।

कुंड के खाली होते ही बड़ी उत्सुकता
मंदिर के उत्तर दिशा में परिसर में ही प्राचीन कुंड है। इसमें पूरे 12 माह पानी भरा रहता है। इस कुंड की सफाई व मरम्मत का भी काम चल रहा है। ऐसी क्यों डांडिया है कि इस कुंड मैं सबसे नीचे एक सुरंग बना हुआ है जो राजिम में स्थित राजिम लोचन मंदिर के आसपास निकला है। हालांकि इस अब तक किसी ने नहीं देखा है। करीब 20 साल बाद इस कुंड की सफाई हो रही है इस वजह से वर्तमान पीढ़ी के लोगों में इस सुरंग को लेकर उत्सुकता बन गई है। यह पूरा कुंड उल्टे पूरा पिरामिड के आकार का बना हुआ है जो ऊपर 60 बाई 40 फीट का चौड़ा एवं लंबा है वही नीचे सकरा होते चला गया है। कुंड में करीब 18 फीट गहराई तक चारों ओर पत्थर का पचरीकरण किया गया है। वर्तमान में इसके नीचे अभी पानी भरा हुआ है पुरातत्व विभाग के अधिकारियों के मुताबिक इसके नीचे पत्थर नहीं है। प्रतिदिन यहां इस कुंड में किवदतियों के अनुसार बने सुरंग को देखने के लिए लोग पहुंच रहे हैं।
कुंड में कई स्थानों पर पत्थर टूट गए हैं अथवा जोड़ने के लिए लगाया गया सीमेंट निकल गया है। इसकी भी मरम्मत की जानी है मरम्मत से पूर्व सभी पत्थरों पर नंबरिंग की गई है। इस नंबर के आधार पर ही पत्थरों को दोबारा उसे उनके वर्तमान स्थान पर ही लगाया जाएगा। जो पत्थर टूट गए हैं अथवा दरारें आ गई है उन्हें बदल जाएगा। इसके लिए पत्थर के वजन के मुताबिक क्रेन का इंतजाम भी किया गया है। जानकारी के मुताबिक कुंड का काम पूरा होने में तीन माह का समय लगेगा।