साहित्य सृजन संस्थान की काव्य संध्या : विमतारा में गूंजी कविताएं

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39 वीं मासिक काव्य संध्या एवं सम्मान समारोह

रायपुर, साहित्य सृजन संस्थान द्वारा लगातार जारी 39 वीं मासिक काव्य संध्या एवं सम्मान समारोह, रविवार को विमतारा हॉल, में कविताओं ने सभी को मंत्र मुग्ध कर लिया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ.संजय अलंग पूर्व आईएएस एवं अरुण कांत शुक्ला,साहित्यकार विशिष्ठ अतिथि थे।
इस कार्यक्रम में जुगेश चंद्र दास को साहित्य सृजन श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान एवं दिनेश राठौर “दानिश” को साहित्य सृजन श्रेष्ठ काव्य पाठ सम्मान से सम्मानित किया गया। साथ ही संस्था के सदस्यों की विशेष उपलब्धि पर आर डी अहिरवार, प्रीतेश कुमार पाण्डेय, अनिल राय भारत एवं पंखुरी मिश्रा को शॉल पहनाकर सम्मानित किया गया।
संस्था के अध्यक्ष वीर अजीत शर्मा, ममता खरे मधु अध्यक्ष महिला प्रकोष्ठ व उमेश कुमार सोनी संयोजक द्वारा बताया कि संस्था युवा रचनाकारों को मंच प्रदान कर उनके उत्कृष्ट काव्य पाठ को प्रोत्साहित और सम्मानित भी करती है।इसी श्रृंखला में युवा कवयित्री काजल वस्त्रकार एवं को साहित्य सृजन युवा काव्य पाठ सम्मान से सम्मानित किया गया।
कवियों ने अपनी रचनाओं से सभी को मंत्र मुग्ध कर दिया।उनकी रचनाओं के कुछ अंश निम्न हैं।

मौन की भाषा शोर न समझे
प्रेम की दौलत चोर न समझे
सुनो सुनो ये बात
व्यक्ति वो मुर्दा है जिसमे नहीं कोई जज़्बात
पंखुरी मिश्रा

नशे की धुंध से निकलो सरल इंसान हो जाओ
नारी को मान दो मां बाप के अभिमान है जाओ
विवेकानंद होना है कठिन पर है सरल ये तो
मनुज की देह में हो तो मनुज समान हो जाओ
आरव शुक्ला

पुण्य प्रेम-प्रीत का प्रतीक है वो परब्रम्ह,
कोई कान्हा कृष्ण कोई केशव बुलाता है…
मोहनी मूरत मंद मुसकान माधव की,
जो भी देखे बस देखता ही रह जाता है…
केश काले घुंघराले, शीश मोर पंख डाले,
अनिल राय “भारत”

नाम जानकार क्या करोगे मेरा
न ही जानना है नाम तुम्हारा
तब भी हमारा साथ है सभी जगह
गांव में,जंगल में,शहर में
डॉ. संजय अलंग

वो पांच हैं,
उनमें से चार,
75 वर्ष से जुआं खेल रहें हैं
तीन पत्ती
चारों में से एक हर बार हारता है
उनके पास हमेशा
दो तीन पांच आता है।
अरुण कांत शुक्ला

अगर जीवन इच्छानुरूप न चले
तनाव असफलताएं बेजार कर दे
कठिनाइयां दुर्भाग्य निराश कर दे
न थके न हारे न टूटे बस धीरज धरें।।
डा. साधना कसार

सुनलो फुरसत का इतना फसाना
इंस्टा विंस्टा ना ज्यादा चलाना
शॉर्ट वीडियो में ना डूब जाना
माना ये है खुशी का खजाना
इनमें हो जाता है दिल दीवाना
मयूराक्षी मिश्रा

दिल किसी का दुखाना बुरी बात है,
छोड़ मौके पे जाना बुरी बात है।
जिसने तुमको जहाँ की ख़ुशी है दिया,
उसको नीचा दिखाना बुरी बात है।
ममता खरे ‘मधु’

ये ज़िन्दगी
ज़िन्दगी नहीं एक दर्द है
जो घूमती इर्द गिर्द है !
मै लाख़ छुड़ाना चाहूँ इसे
और जकड़ती जा रही है मुझे !!
आज क्या ये ज़िन्दगी है !!!
ज़िन्दगी तू ही बता तुझे कैसे जिऊँ
तड़पती रहूँ या ख़ुदा से मिलूं !
सुषमा बग्गा

अपना हर सुख,हर खुशी बच्चों पे निछावर करती, वो कौनसा त्याग है, बताओ, जो माँ नहीं करती , मूर्ख हैं जो कहते हैं माँ गुज़र गई उनकी, अरे! माँ तो माँ है , माँ कभी नहीं मरती ।
एस. एन . जोशी

तुम ख़ुद को ही  खो गए कहीं,
क्या तुम्हें ध्यान है?
ठेस पहुँचाई तो है सबने,
क्या तुम्हारा  अपना भी अभिमान है?
काजल

दर्द कागज़ पे ग़ज़ल बनके उतर जाता हैं,
आदमी ज़ब्त की जब हद से गुज़र जाता है,
भूल सकता है ज़माने में सभी कुछ शायर,
शेर कहने का कहीं उसका हुनर जाता हैं.!
उमेश कुमार सोनी ‘नयन’

झूला झुलाऊंगा मैं उसको सुनाऊंगा मैं
जुगनू जो तेरे भीतर भीतर आंगन सजाऊंगा मैं
मम्मा की लोरी जो मैने सुनी
अम्मा की लोरी जो मैने सुनी
सब कुछ सुनाऊंगा मैं
झूला झुलाऊंगा मैं उसको सुलाऊंगा मैं
प्रीतेश पाण्डेय

आदमी ऐसे हमें अक्सर मिले
फूल से चेहरे जिगर पत्थर मिले
ज़िन्दगी थी ग़म के साये में मगर
उनसे हम जब भी मिले हंसकर मिले
दिनेश राठौर दानिश

कभी हॅंसाती तो कभी रुलाती है जिन्दगी।
ठोकर से फिर संभलना सिखाती है जिन्दगी।।
विजया ठाकुर

महफ़िल में सबके सामने छा जाने भी तो दे
ख़ुशियों के आँसू आँख से छलकाने भी तो दे

मैं आज उनसे हाथ मिलाकर के आया हूँ
कुछ देर ज़िन्दगी मुझे इतराने भी तो दे
आर डी अहिरवार

सुबह सुबह संपादक को फोन आया
सबका छापा मेरा नाम भी नहीं आया
संपादक ने उन्हें बताया इसीलिए
अखबार में खेद समाचार है बनाया
वीर अजीत शर्मा

मॉडर्न जेनरेशन में, वो पुराने परंपराओं की पहरेदार है।
चूड़ी, बिंदी, साड़ी में सजी, वो मिडिल क्लास मां है
तुलसी साहू

मैं नीति की नहीं कहतीं और ये नियम क़ानून भी मुझे समझ नहीं आते नादान हूँ नासमझ हूँ चलो मान लिया मैंने मगर ये ओछे लिबास मुझे ओढ़ने नहीं आते।
हिना लखीसरानी

कौन हैं वो ,जो चौराहों पर , कफ़न बेचते हैं
कभी,गोले बारूद, तो,कभी ,
जिंदा बम बेचते हैं
मजहबों के नाम पर ,लड़ने वाले ,अक्सर
अपने वजूद के , ईमान ओ धरम
बेचते हैं
रीना अधिकारी

“फिर से वो ठंड की बरसात आई हैं……
फिर से वो गहरी रात आई हैं…….तुझे भूलने निकली थी इस दुनिया में मैं……
पर कमबख्त, फिर से तेरी याद आई हैं….. फिर से तेरी याद आई हैं….।।”
अदिती तिवारी ‘शायरा’

तुझे भूलने निकली थी इस दुनिया में मैं……
पर कमबख्त, फिर से तेरी याद आई हैं….. फिर से तेरी याद आई हैं….।।”
अदिती तिवारी ‘शायरा’

तुमने दी जो उपमा मुझको, मैंने अंगीकार किया |
पागल कहकर तुमने मेरा,जो स्वागत सत्कार किया ||

प्रथम दृष्टि में ही मुस्काकर, तथा दृगों को करके बंद |
विचरण करती रही हृदय में,तुम मेरे निर्भय स्वच्छंद
सत्येंद्र तिवारी “सकुति”

खो गए हैं इस शहर की भीड़ में ,
याद आता है वो प्यारा गाँव।
स्नेह से छलकते वो पनघट ,
नीम पीपल की वो घनी छांव।
अनामिका शर्मा ‘ शशि ‘

जिंदगी कुछ पल ठहर जा,
काम अभी बाकी है।
बातें कर लूँ प्रियजन से,
शाम अभी बाकी है।।
जुगेश चंद्र दास कोसरंगी

नी जावे खेत, छुट्टी सरकारी मान लेथे
कुकरी ऊ भात रानध तिहारी मान लेथे
सांझ होथ तरिया पार म लुका के
देशी कोटर मार के ईतिवारी मान लेथे
राहुल साहू

कर सतत अभ्यास हमने
सीप में मोती भरे खुद
संगी साथी बंधु-बांधव
स्वर्ण मृग से टिक न पाये
फिर भी मैं बनकर पुरोधा
यह पावन कर रही हूं
तब तुम्हारा स्वर्ग लेकर क्या करूंगी।
आशा मानव

इस काव्य संध्या में किशोर लालवानी, सरोज सप्रे, मन्नूलाल यदु, हबीब खान समर, ऋषि साव, कृष्ण कुमार वर्मा, शुभ्रा ठाकुर, मुबारक हुसैन, जावेद नदीम, राकेश किशोर, संजय कुमार पांडे, गोपाल शुक्ला, रूनाली चक्रवर्ती, आशीष ठाकुर, मंजूषा अग्रवाल, अशोक कुमार खरे, सूर्यकांत प्रचंड, योगेश शर्मा “योगी”, मुकेश साहू, राजेश बत्ता, अनिता झा, के पी सक्सेना, गिरधर पांचाल, राजकुमार पाण्डेय, संजय देवांगन,डॉ. चंद जैन, कृष्ण राज वर्मा, कमश देव, डॉ युक्ता राजश्री ने काव्य पाठ एवं उपस्थिति दर्ज कर कार्यक्रम को सफल बनाया।
कार्यक्रम का सफल संचालन उमेश कुमार सोनी नयन संयोजक द्वारा किया गया।

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