सिरसिदा गांव की 27 साल पुरानी नवाचारी परंपरा, जिसे गांववालों ने ‘अलग करने के जुनून’ से शुरू किया था
भिलाई । अब तक आपने रावण के पुतले को मैदान में जलते देखा होगा, लेकिन बालोद जिले के सिरसिदा गांव में रावण को ना जमीन मिलती है ना आसमान बेचारा सीधे तालाब में तैरते हुए जलता है!
2 अक्टूबर को यहां दशहरा के दिन होगा वो नज़ारा, जो देखने हर साल लोग दूर-दूर से आते हैं। 40 फीट ऊंचा रावण, पूरी रावण लीला के बाद तालाब के बीचोंबीच तैरते हुए, भव्य आतिशबाजी के साथ अग्नि में विलीन हो जाता है।
अब आप सोच रहे होंगे – तालाब में रावण? वो भी तैरता हुआ?
तो जनाब, ये है सिरसिदा गांव की 27 साल पुरानी नवाचारी परंपरा, जिसे गांववालों ने ‘अलग करने के जुनून’ से शुरू किया था। कहते हैं कि रावण को मिले थे ऐसे वरदान कि वो ना ज़मीन में मरेगा, ना आसमान में। तो गांववालों ने सोचा – क्यों ना उसे तालाब में ही तैराकर विदा किया जाए?
सिरसिदा, जो अंडा से 7 किलोमीटर और बालोद से करीब 40 किलोमीटर दूर है, हर साल दशहरा पर अनोखे रावण दहन के लिए चर्चा में रहता है। रामलीला पूरी होने के बाद, विशाल रावण को खास बोट जैसे फ्लोट पर तालाब के बीच ले जाया जाता है। फिर शुरू होती है रंग-बिरंगी आतिशबाजी और जलता है ‘तैरता रावण’।