विमतारा हॉल में आयोजित ‘काव्य संध्या कार्यक्रम के मुख्य अतिथि संजय अलंग, अध्यक्षता वीर अजीत शर्मा ने की
रायपुर। साहित्य सृजन संस्थान के तत्वावधान में रविवार को
विमतारा हॉल मधु पिल्ले चौक शांति नगर में आयोजित ‘काव्य संध्या कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार, इतिहासकार और पूर्व आईएएस अधिकारी संजय अलंग रहे, जबकि अध्यक्षता संस्थान के अध्यक्ष वीर अजीत शर्मा ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में वरिष्ठ पत्रकार आशिफ इकबाल, वरिष्ठ साहित्यकार शीलकांत पाठक, राममूरत शुक्ला, सुरेन्द्र रावल, उपस्थित थे । कार्यक्रम का संचालन सीमा पाण्डेय ने किया। संस्था के संयोजक उमेश कुमार सोनी नयन ने उपरोक्त जानकारी प्रदान की।

इस अवसर पर श्रेष्ठ काव्य पाठ सम्मान दीपिका ऋषि झा, पूर्व श्रीवास्तव एवं श्रेष्ठ काव्य पाठ सम्मान से डॉक्टर चंद जैन अंकुर को सम्मानित किया गया। इसी प्रकार उपस्थित श्रोताओं में लॉटरी पद्धति से श्रोताओं डॉ.आर.के.अग्रवाल एवं विनोद कुमार का भी स्मृति चिन्ह दे सम्मान किया गया।

“साहित्यिक समारोह में अनेक रचनाकारों ने अपनी उत्कृष्ट रचनाओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। प्रस्तुत हैं कुछ चुनिंदा रचनाओं के अंश, बानगी स्वरूप।”

इनके अलावा डॉ. सिद्धार्थ श्रीवास्तव, अनामिका शर्मा, किशोर लालवानी, हबीब खान समर बागबाहरा, अजय सोनी, विक्रम शारदा, सुनील शर्मा, विजया ठाकुर, वीरेंद्र शर्मा, विनय अन्थवाल, उमाशंकर मिश्रा बिलासपुर, आर डी अहिरवार, मनोहर सिंघ, रमनीत कौर, संजय पांडेय, डॉ.अर्चना पाठक, सुरेन्द्र रावल, वीरेंद्र शर्मा अनुज, चैतन्य गोपाल बिलासपुर, शिव शंकर गुप्ता, आशा मानव, डॉ.साधना कसार, अशोक शर्मा महासमुंद, संतोष शर्मा, उत्तम देवहरे, विद्या भट्ट, नेहा त्रिवेदी, सफदर अली, यशवंत यदु यश, विनोद कुमार, कुमुद लाड आदि ने काव्य-पाठ कर वाहवाही लूटी।

काव्यों की रचनाओं की कुछ पंक्तियां –
* बस्ती जला बैठा गुमान देखो
कोई है नही बाकी मकान देखो
पैरों तले छाले न देख मेरे
है देखना तो इम्तिहान देखो
रोशन सुरेश
* जिन्दगी को कुछ अपनी सरल कीजिए ।
है सघन ये बहुत अब तरल कीजिए ।।
सीमा पाण्डेय
* उठा लाये हैं साज़ों को तराना छोड़ आये हैं l
लबों पर उनके गीतों का ख़ज़ाना छोड़ आये हैं l
नयी फसलें उगाने का जतन करना है तुमको ही –
मशीनी दौर में हम हल चलाना छोड़ आये हैं l
उमेश कुमार सोनी ‘नयन’
* अंधे लोग अंधा तंत्र अंधी सोच अंधा मंत्र सो रहे है इसी अंधकार में सभी की जैसे ख़त्म न होगी ये रात कभी
हिना लखिसरानी
* खिलने लगी हैं ज़हन में शाम से.. यादें, पारिजात -सी
झरने लगी हैं यादें.. आहिस्ता-आहिस्ता पारिजात- सी..
विद्या भट्ट
* ये मेले हैँ, तमाशे हैँ जहाँ देखो जिधर देखो
सुकूँ की खोज में तो आज हर इंसान लगता है
पूर्वा श्रीवास्तव

* ये जानते हैं जो भी हैं आईनादार लोग
” उजले लिबास में हैं कई दाग़दार लोग “
अपने लिए तो रखते हैं फूलों की आरज़ू
ग़ैरों के रास्ते में बिछाते हैं ख़ार लोग
सुखनवार हुसैन
* मेरे इस जनाजे को कलम से सजा देना
पढ़ के मेरी ग़ज़ल मुझे आखरी विदा देना
सफ़ेद पन्नों में नीला लफ्ज़ खूब जंचता है
ज़रा मेरे कफन में थोड़ी स्याही लगा देना
चैतन्य गोपाल
* एक किलकारी घर में गूंजी
आंगन आंगन महक उठा
परी से प्यारी बिटिया आयी
पिता का मन लहक उठा
अदिति वर्मा
* सुकून से बैठा हूँ मैं अपने गाँव में
हवा बहती है बरगद की छाँव में
डूबने निकला था उसकी आँखों में, बचाने आ गई वो अपनी नाव में।
राहुल कलिहारी
* उड़ता नहीं हूँ ऊँचा मैं तन्हाई के डर से
हर चीज़ नज़र आती है छोटी सी शिखर से
जो कुछ है मेरे पास, है मेहनत का नतीज़ा
आगाज़-ए-सफ़र था मेरा सचमुच में सिफ़र से
आर डी अहिरवार
