साहित्यिक सेवाओं के लिए राष्ट्रीय स्तर पर मिली पहचान
भिलाई : भोपाल / दुर्ग, छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले की साहित्यकार नेहा वार्ष्णेय ने अपनी अद्भुत साहित्यिक प्रतिभा और समर्पण के बल पर न केवल स्थानीय स्तर पर, बल्कि राष्ट्रीय पटल पर भी अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई है। हाल ही में उन्हें उनकी उत्कृष्ट साहित्यिक सेवाओं के लिए ‘महर्षि वेदव्यास सम्मान’ से सम्मानित किया गया है, जिससे पूरे राज्य में गर्व की लहर दौड़ गई है।
नेहा वार्ष्णेय, जिनका जन्म वर्ष 1983 में हुआ, ध्रुव नंदन एवं उमा नंदन की सुपुत्री हैं। उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा उत्तर प्रदेश के महात्मा ज्योतिबा फुले विश्वविद्यालय, चंदौसी से प्राप्त की, जहाँ उन्होंने एम.ए. इंग्लिश और एम.सी.ए. की डिग्री हासिल की। तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी उनका झुकाव साहित्य की ओर बना रहा और वर्ष 2023 से वे सक्रिय रूप से साहित्य-सृजन में लगी हुई हैं।

उनकी पहली पुस्तक “बदल रही हूँ – शौक की उम्र में सब्र सिखाती जिंदगी” को पाठकों और समीक्षकों द्वारा बेहद सराहा गया। इस पुस्तक में उन्होंने नारी मन की जटिलताओं, संघर्षों और आत्मबल को जिस संवेदनशीलता से अभिव्यक्त किया है, वह पाठकों को आत्ममंथन के लिए प्रेरित करता है। वर्तमान में वे तीन अन्य पुस्तकों पर कार्य कर रही हैं, जो शीघ्र ही साहित्य-जगत की शोभा बढ़ाएंगी।
नेहा वार्ष्णेय का मानना है कि साहित्य केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं, बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का एक सशक्त उपकरण है। वे भगवान श्रीकृष्ण को अपना प्रेरणास्रोत मानती हैं और श्रीमद्भगवद्गीता को अपने जीवन की प्रियतम रचना बताती हैं।
उनकी साहित्यिक यात्रा में उन्हें नव चेतना, सत्य साहित्यिक गंगा, एवं राष्ट्रीय साहित्य प्रभा जैसे मंचों का सक्रिय सहयोग प्राप्त है। वे कई प्रतिष्ठित कवि सम्मेलनों में भाग ले चुकी हैं और देश-विदेश की पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाएँ प्रकाशित होती रही हैं।
उनकी इस उपलब्धि पर परिवार, शुभचिंतकों और स्थानीय साहित्यिक समुदाय में हर्ष की लहर है। सभी ने उन्हें हार्दिक बधाइयाँ दी हैं और उम्मीद जताई है कि नेहा आगे भी छत्तीसगढ़ और देश का नाम साहित्य के क्षेत्र में ऊँचाइयों तक पहुँचाती रहेंगी।
नेहा वार्ष्णेय का यह सफर हर उस महिला के लिए प्रेरणास्रोत है, जो घरेलू जीवन के साथ-साथ अपने रचनात्मक स्वप्नों को भी उड़ान देना चाहती है। वे इस बात की मिसाल हैं कि सृजनात्मकता और आत्मबल से कोई भी महिला समाज में सार्थक परिवर्तन ला सकती है।