आरोपी गिरफ्तार, न्यायिक रिमांड पर भेजा गया
भिलाई : दुर्ग। रेलवे स्टेशन की ठंडी फर्श पर जब एक मां अपनी गोद में दो मासूमों को सुलाकर थोड़ी सी नींद ले रही थी, तब उसे यह एहसास नहीं था कि सुबह की पहली किरण उसके जीवन की सबसे बड़ी आफत बनकर आएगी। 26 जुलाई की सुबह, सूर्या और सोनू मानिकपुरी की दुनिया तब उजड़ गई, जब उन्होंने पाया कि उनकी गोद से उनका 18 माह का बच्चा अचानक गायब है।
कांपते हुए हाथों से सोनू ने जब बच्चे का चेहरा टटोलना चाहा और कुछ भी न मिला, तो उसका कलेजा कांप उठा। हर मां की सबसे बड़ी चिंता – “मेरा बच्चा कहां है?” – हकीकत बन चुकी थी।
सूचना मिलते ही रेल पुलिस दुर्ग हरकत में आई। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार अपहरण का मामला दर्ज हुआ और फिर जो सिलसिला शुरू हुआ, उसने साबित कर दिया कि जब पुलिस संवेदनशीलता और संकल्प के साथ काम करे, तो कोई भी बच्चा खोया नहीं रहता।

रेल पुलिस अधीक्षक श्वेता श्रीवास्तव सिन्हा और उप पुलिस अधीक्षक एस.एन. अख्तर के मार्गदर्शन में जब सीसीटीवी खंगाले गए, तो पहली उम्मीद की किरण पुरी-गांधीधाम एक्सप्रेस की एक बोगी से मिली। वहीं से पुलिस ने उस अधेड़ व्यक्ति की पहचान शुरू की, जिसने मासूम को गोद में लेकर चुपचाप ट्रेन में चढ़ते देखा गया।
लेकिन आरोपी अरुमुगम, उम्र 45 वर्ष, बहुत चालाक था। नागपुर से होते हुए जब वह चंद्रपुर पहुँचा, तो आरपीएफ को शक हुआ। पूछताछ में उसने बच्चे को अपना बताया और आधार कार्ड भी दिखाया, जिससे वह उस समय बच निकला।
तब शुरू हुआ असली पीछा – तकनीक और इंसानियत का संगम
पुलिस ने हार नहीं मानी। मोबाइल लोकेशन ट्रेस कर, संदिग्ध की गतिविधियों को खंगालते हुए अंततः टीम तमिलनाडु के तंजावूर जिले के तिरूनिलपुडी गांव तक पहुँच गई।
उप निरीक्षक जनकलाल तिवारी के नेतृत्व में टीम ने जैसे ही आरोपी के घर दस्तक दी, मासूम बच्चा भीतर था – सहमा हुआ, पर सुरक्षित।
लेकिन सबसे भावुक पल वो था, जब पुलिस टीम ने उसे मां सोनू मानिकपुरी की गोद में लौटाया। बच्चा उसकी आवाज़ पहचानते ही फूट-फूटकर रोने लगा और सीधे उसकी गोद में समा गया। उस क्षण में न कोई शब्द थे, न सवाल – बस एक मां और बच्चे की बिना बोले समझी जाने वाली जुबां।
आरोपी अरुमुगम को 10 अगस्त को गिरफ़्तार कर न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक रिमांड पर जेल भेज दिया गया है।