हाई कोर्ट का अहम फैसला: पत्नी को मोबाइल पासवर्ड और बैंक डिटेल साझा करने को मजबूर नहीं कर सकता पति

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रायपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट किया है कि विवाह के बाद भी हर व्यक्ति की निजता सुरक्षित है। कोर्ट ने कहा कि कोई पति अपनी पत्नी को उसकी कॉल डिटेल, मोबाइल पासवर्ड या बैंक जानकारी साझा करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। ऐसा करना निजता के अधिकार का उल्लंघन है और यह परिस्थितियों के अनुसार घरेलू हिंसा की श्रेणी में भी आ सकता है।

यह फैसला न्यायमूर्ति राकेश मोहन पांडे की एकलपीठ ने उस मामले में दिया, जिसमें एक पति ने पत्नी पर चरित्र पर संदेह जताते हुए उसकी कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) मांगी थी। पति ने फैमिली कोर्ट में हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(i-a) के तहत तलाक की याचिका दाखिल की थी और इस दौरान पत्नी की निजी जानकारी मांगी, जिसे फैमिली कोर्ट ने खारिज कर दिया। पति ने इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।

हाई कोर्ट ने कहा कि जब तलाक ‘क्रूरता’ के आधार पर मांगा गया है, न कि व्यभिचार के आधार पर, तब इस तरह की निजी जानकारी की मांग अनुच्छेद 21 में प्रदत्त निजता के अधिकार का उल्लंघन मानी जाएगी। विवाह का अर्थ यह नहीं है कि पति को पत्नी की हर निजी चीज़ पर अधिकार मिल जाए।

न्यायालय ने इस संदर्भ में के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत सरकार (2017), पियूसीएल बनाम भारत सरकार (1996) और मिस्टर एक्स बनाम हास्पिटल जेड (1998) जैसे महत्वपूर्ण फैसलों का उल्लेख करते हुए कहा कि निजता का अधिकार व्यक्ति की गरिमा, यौन पहचान और वैवाहिक रिश्तों की मर्यादा को संरक्षित करता है।

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि पारदर्शिता और विश्वास विवाह के स्तंभ जरूर हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि कोई पति या पत्नी एक-दूसरे की संचार स्वतंत्रता और गोपनीयता में दखल दे। अंततः हाई कोर्ट ने पति की याचिका को निराधार बताते हुए खारिज कर दिया और फैमिली कोर्ट के फैसले को सही ठहराया।

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